सोमवार, 9 नवंबर 2009

वफा चाहा ।

हाल -ऐ -दिल मैं ने जो दुनिया को सुनना चाहा
मुझ को हर शख्स ने दिल अपना दिखाना चाहा
अपनी तस्वीर बनाने के लिए दुनिया में
मैं ने हर रंग पे इक रंग चड़ना चाहा
शोलो से गुलशन को बचाने के लिए
मैं ने हर आग को सीने में छुपाना चाहा
अपने ऐबों को छुपाने के लिए दुनिया में
मैं ने हर शख्स पे इल्जाम लगना चाहा
भीड़ भरी दुनिया में , मतलबी दुनिया में
से कुछ अपनों का साथ चाहा,
शायद वो भी गावरान नहीं ज़िन्दगी को ,
अपनों ने भी निघओं की वफा चाहा ।


बुधवार, 23 सितंबर 2009

सकता हैं।

गिरने वाला जो संभल जाए तो उठ सकता हैं,
गिरके उठने का ख्याल आए तो उठ सकता हैं।
अपनी ताक़त पे न इतराइए, तो उठ सकता हैं,
और गुनाहों पर जो शरमाये तो उठ सकता है।
कदम तो लद्खते हैं ज़िन्दगी में कई बार ,
पर निघौन से जो न गिरा हो तो उठ सकता हैं।
तिनका तिनका जो संजो सकता हैं जीवन में,
मकान को घर बना सकता है।




गुरुवार, 13 अगस्त 2009

नहीं मिलता।

ढँढो तो मिलता है खुदा भी,पर सचा इन्सान नहीं मिलता।
बहुत तलाशा इन नज़रों ने, पर तेरे जैसा नहीं मिलता,
जो भी मुझसे रु- बरु हुआ,
उसे इस जहाँ में कोई नाम नहीं मिलता।
न जाने क्यूँ खो जाते, मेरी आँखों की लकीरों में ,
मेरे आन्सोन को कोई रास्ता नहीं मिलता।
हर किसी को मुकमल जहाँ नहीं मिलता।
किसी को ज़मीन ,किसी को आसमान नहीं मिलता।

शनिवार, 11 जुलाई 2009

अफ़सोस

होंटों पे हंसी देख ली दिल के अंदर नहीं देखा,
आप ने मेरे ग़मों का समुंदर नहीं देखा,
कितनी खूब सूरत है ये दुनिया ये देखा है आप ने,
जी जी के मरने वालोह का मंज़र नहीं देखा,
शीशे का मकान तू ने बना तो लिया है दोस्त,
लेकिन वक़्त के हाथ का पथेर नहीं देखा ,
रिश्तों के टूटने का दर्द तुम क्या जानो ,
वो लम्हा तुम ने कभी जी कर नहीं देखा,
भटके रौशनी की तलाश में न जाने कहाँ कहाँ,
अफ़सोस के अपनी रूह के अंदर ही नहीं देखा।

सोमवार, 6 जुलाई 2009

दामन

यूँ न मुझ को देख तेरा दिल पिघल न जाये
मेरे आंसुओ से तेरा दामन जल न जाये।
वो मुझ से फिर मिला है आज खाव्वाबों में
ऐ खुदाया कहीं मेरी नींद खुल न जाये।
पूछा न कर सब के सामने मेरी कहानी
कहीं तेरा नाम होटों से निकल न जाये।
यूँ न हँस के दिखा दुनिया को ,
कहीं दो आंसों निकल न जाए ।
जी-भर के देख ले हम तुम को सनम
क्या पता फिर ज़िन्दगी की शाम ढल न जाए।

मंगलवार, 23 जून 2009

सब उसका है.


मैंने जो कुछ खोया हैं, सब उसका है,
जो कुछ पाया है , सब उसका है .
जब मैं टूटा , वो भी टूटा ,
यहाँ वहा जो बिखरा हैं, सब उसका है.
मुझ में जो कुछ अच्छा है , सब उसका है,
जो कुछ भी बुरा हैं , सब उसका हैं,
मेरी आँखें उसके नूर से रोशन है ,
जो भी देखा है , सब उसका है ,
जो बह गया आँखों से , सब उसका है,
जो ढल गया निघओं मैं , सब उसका है.

शनिवार, 20 जून 2009

कुछ



उम्र में हादसे भी ज़रूरी है कुछ ,
फासले भी ज़रूरी हैं कुछ,
आप रखे न रखे ,
आपसे रंजिश भी ज़रूरी है कुछ
खो दिया तुम्हे इस ज़िन्दगी मैं ,
खो के पाना भी ज़रूरी है कुछ
हमने माना की एक ख्वाब है ज़िन्दगी ,
ख्वाब में कहकहे भी ज़रूरी है कुछ,
हँस हँस के आन्जन ना हो अपने आप से,
आँखों में आंसों भी ज़रूरो है कुछ 

शुक्रवार, 12 जून 2009

देर तक ।

वो रुलाकर हँस न पाया देर तक ।
जब में रो कर मुस्क्रुया देर तक।
किसी भी आईने में ।
कोई चेहरा रुकता नहीं हैं देर तक।
भूखे बच्चो की तस्सली के लिए,
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक ।
हमने तघाफुल ना किया तब भी ,
जब ज़नाजे पे वो न आया देर तक।
मुझ में ही कोई कमी होगी शायद ,
इसलिए तो मुझे समझ न पाया देर तक।
दिल को तो समझा लेते लेकिन,
अश्क तो अश्क हैं, रुक ही न पाया देर तक।
गुनगुनता हुआ एक फ़कीर कह रहा था,
धुप रहती हैं , न छाया देर तक ।

गुरुवार, 11 जून 2009

हमने देखा है

हमने फूलों को काँटों के बीच खिलते हुए देखा हैं।
फलक का चाँद, बादलों के बीच निकलते हुए देखा है .
कराहने की आवाज़ गुम हो जाती हैं ,
हमने दिलो को पत्थर बनते हुए देखा हैं ।
उनके कंधे पे सर रख कर जब रोया था,
बूँद को मोती बनते हुए देखा है.
सच कहतें है मोहब्बत की जुबान नहीं होती ,
लफ्जों को लबो पे रुकते हुए देखा है.
एक वक़्त था जब नज़र ढूंढा करती थी उन्हें,
आज उन को नज़र चुरातें हुए देखा है.
लोग मजाक उडाते हैं गरीबों का,
हमने गरीबी से अमीरी का फासला देखा है.
ग़र्दिश में आता है ऐसा भी मुकाम,
हमने दिल को दिमाग से लड़ते हुए देखा हैं.

मंगलवार, 9 जून 2009

ये मंज़र क्यूँ है

आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है
इस अंजुमन में हर कोई तनहा क्यूँ हैं।
अपना अंजाम तो मालोम हैं सबको फिर भी,
अपनी नज़रों में हर शख्स सिकंदर क्यूँ है,
तखय्युल का ये आलम इतना ऊपर है फिर भी ,
अमीरी गरीबी में इतना फर्क क्यूँ है,
हमे यकीन है वोह हमसे बहुत दूर है ,
मिलने की आरजू फिर भी जिंदा क्यूँ है,
जब हकीक़त हैं की हर ज़रे में तू रहता हैं ,
फिर ज़मीं पे कही मस्जिद , कही मंदिर क्यूँ हैं .

सोमवार, 1 जून 2009

तेवर

मेरी ज़िन्दगी के तेवर मेरे हाथ की लकीरें ,
इन्हें तुम अगर बदलते तो कुछ और बात होती।
मैं तुम्हारा आइना था ,
मुझे देख कर संवार्तें तो कुछ और बात होती।
अभी आँख मिली हि थी के गिरा दिया नज़र से,
ज़रा फासले सिमट 'तय तो कुछ और बात होती।
ये खुली खुली सी जुल्फें इन्हें लाख तुम संवारो.
मेरे हाथ से संवारतें तो कुछ और बात होती।
मुझे अपनी ज़िन्दगी का कोई ग़म नहीं है,
लेकिन तेरे डर पे जान नि क लती तो कुछ और बात होती ।

सोमवार, 25 मई 2009

मुख्तलिफ

सो गई है दुआ हथेली पर ,इक नज़र ऐ खुदा हथेली पर , वोह भी तकदीर से गुरेज़ाँ है ,मैं भी तकता रहा पर, हथेली पर
दे गया उम्र भर के अंधियारे ,एक बुझता दिया हथेली पर , कह गया कितनी अनकही बातें ,फूल रखा हुआ हथेली पर ,
खो गया मुख्तलिफ लकीरों मैं ,जब भी आंसू गिरा हथेली पर , देखले खुद भी अपनी आँखों से ,अपने रब की अता हथेली पर .

बुधवार, 20 मई 2009

सादगी

हमने आज होटों पे हसी ,
आंखों में नमी देखी ।
जो तुझे हर शख्स से अलग कर दे ,
वो सादगी देखी ।
अश्क रुकते नहीं आँखों में ,
गरीबों की बेकसी देख कर ,
चंद टुकडो के लिए ,
कभी आंसो कभी खुशी बेचीं ।
मेरी आंखों में जो नूर हैं ,
आज सादगी की रौशनी देखी ।
गेम ऐ ज़िन्दगी की जुश्त्जो ,
को निभाने की इमितिहाँ,
आज फूलों में भी वो तपिश देखी ।

शुक्रवार, 15 मई 2009

नज़र

अपने चेहरे से जो जाहिर हैं, वोह छुपाइये कैसे

तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आए कैसे ।

कितनी दिलकश हैं उसकी खामोशी ,

बाकि बातें तौ फिजोल हो जैसे ।

यूँ न मिल हमसे खफा हो जैसे ,

हमसे मिल मओजे सबा हो जैसे ।

कोई अपनी नज़र से ही तौ देखेंगा ,

एक कतरे को समंदर नज़र आए कैसे ।

बुधवार, 13 मई 2009

अश्क

गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं काटों से भी जीनत होती हैं,
जीने के लिए इस दुनिया में गम की भी ज़र्रूरत होती हैं
ऐ दिल ऐ नादाँ कहता हैं, ये अश्क नहीं है मेरा दिल हैं,
जो अश्क न छलके आंखों से उस अश्क की कीमत होती हैं/

महोब्बत नहीं मिटती

इसी को तो उम्मीद कहते है ,
हस्ती मिट जाती है पर उम्मीद नहीं मिटती.
सोचा था सब कुछ भुला देंगे हम ,
कमवक़्त इस दिल से तेरे महोब्बत नहीं मिटती.
 

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