आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है
इस अंजुमन में हर कोई तनहा क्यूँ हैं।
अपना अंजाम तो मालोम हैं सबको फिर भी,
अपनी नज़रों में हर शख्स सिकंदर क्यूँ है,
तखय्युल का ये आलम इतना ऊपर है फिर भी ,
अमीरी गरीबी में इतना फर्क क्यूँ है,
हमे यकीन है वोह हमसे बहुत दूर है ,
मिलने की आरजू फिर भी जिंदा क्यूँ है,
जब हकीक़त हैं की हर ज़रे में तू रहता हैं ,
फिर ज़मीं पे कही मस्जिद , कही मंदिर क्यूँ हैं .
मंगलवार, 9 जून 2009
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2 टिप्पणियाँ:
जब हकीक़त हैं की हर ज़रे में तू रहता हैं ,
फिर ज़मीं पे कही मस्जिद , कही मंदिर क्यूँ हैं .
बहुत बढ़िया
वीनस केसरी
जब हकीक़त हैं की हर ज़रे में तू रहता हैं ,
फिर ज़मीं पे कही मस्जिद , कही मंदिर क्यूँ हैं
kya baat hai aap ki rachnao mai ek alag si baat hoti hai
waah ! waah! chha gaye aap to
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