बुधवार, 23 सितंबर 2009

सकता हैं।

गिरने वाला जो संभल जाए तो उठ सकता हैं,
गिरके उठने का ख्याल आए तो उठ सकता हैं।
अपनी ताक़त पे न इतराइए, तो उठ सकता हैं,
और गुनाहों पर जो शरमाये तो उठ सकता है।
कदम तो लद्खते हैं ज़िन्दगी में कई बार ,
पर निघौन से जो न गिरा हो तो उठ सकता हैं।
तिनका तिनका जो संजो सकता हैं जीवन में,
मकान को घर बना सकता है।




 

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