सोमवार, 1 जून 2009

तेवर

मेरी ज़िन्दगी के तेवर मेरे हाथ की लकीरें ,
इन्हें तुम अगर बदलते तो कुछ और बात होती।
मैं तुम्हारा आइना था ,
मुझे देख कर संवार्तें तो कुछ और बात होती।
अभी आँख मिली हि थी के गिरा दिया नज़र से,
ज़रा फासले सिमट 'तय तो कुछ और बात होती।
ये खुली खुली सी जुल्फें इन्हें लाख तुम संवारो.
मेरे हाथ से संवारतें तो कुछ और बात होती।
मुझे अपनी ज़िन्दगी का कोई ग़म नहीं है,
लेकिन तेरे डर पे जान नि क लती तो कुछ और बात होती ।

7 टिप्पणियाँ:

प्रकाश गोविंद ने कहा…

भाई बहुत अच्छी कविता है !

अगर आप टाईपिंग करते समय मात्राओं पर भी ध्यान दें तो आनंद चौगुना हो जाएगा !

आज की आवाज

gazalkbahane ने कहा…

acCaa likhaa hai likhate rahen
http//:gazalkbahane.blogspot.com/या
http//:katha-kavita.blogspot.com पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें

Unknown ने कहा…

bahut khoob
atyant sundar!

उम्मीद ने कहा…

आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
लिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह वाह क्या बात है जनाब..............अच्छी कविता
पर एक बार फिर से देखें

अगर आप मात्राओं पर ध्यान देते
तो कुछ और बात होती

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

wah jee wah. narayan narayan

राजेंद्र माहेश्वरी ने कहा…

so so

 

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