सोमवार, 25 मई 2009

मुख्तलिफ

सो गई है दुआ हथेली पर ,इक नज़र ऐ खुदा हथेली पर , वोह भी तकदीर से गुरेज़ाँ है ,मैं भी तकता रहा पर, हथेली पर
दे गया उम्र भर के अंधियारे ,एक बुझता दिया हथेली पर , कह गया कितनी अनकही बातें ,फूल रखा हुआ हथेली पर ,
खो गया मुख्तलिफ लकीरों मैं ,जब भी आंसू गिरा हथेली पर , देखले खुद भी अपनी आँखों से ,अपने रब की अता हथेली पर .

1 टिप्पणियाँ:

abhivyakti ने कहा…

आप की शायरी में बहुत दर्द है. पर काविले तारीफ आप की बात में दम तो है
बहुत ही सुंदर पंक्तिया ........

 

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