शुक्रवार, 15 मई 2009

नज़र

अपने चेहरे से जो जाहिर हैं, वोह छुपाइये कैसे

तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आए कैसे ।

कितनी दिलकश हैं उसकी खामोशी ,

बाकि बातें तौ फिजोल हो जैसे ।

यूँ न मिल हमसे खफा हो जैसे ,

हमसे मिल मओजे सबा हो जैसे ।

कोई अपनी नज़र से ही तौ देखेंगा ,

एक कतरे को समंदर नज़र आए कैसे ।

1 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

i think aap ko enginnering chhod kar poet hi bane rahna chahiye
kitna accha likhte hai aap
or waise ek baat batao hai kiske ware main.....???????

 

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