बुधवार, 20 मई 2009

सादगी

हमने आज होटों पे हसी ,
आंखों में नमी देखी ।
जो तुझे हर शख्स से अलग कर दे ,
वो सादगी देखी ।
अश्क रुकते नहीं आँखों में ,
गरीबों की बेकसी देख कर ,
चंद टुकडो के लिए ,
कभी आंसो कभी खुशी बेचीं ।
मेरी आंखों में जो नूर हैं ,
आज सादगी की रौशनी देखी ।
गेम ऐ ज़िन्दगी की जुश्त्जो ,
को निभाने की इमितिहाँ,
आज फूलों में भी वो तपिश देखी ।

1 टिप्पणियाँ:

avhivyakti ने कहा…

गेम ऐ ज़िन्दगी की जुश्त्जो ,
को निभाने की इमितिहाँ,
आज फूलों में भी वो तपिश देखी ।

बहुत ही सुंदर पंक्तिया मान को छु गई

कुछ दर्द ऐसे भी होते है
जो नज़र आते नहीं है,

कुछ किस्से ऐसे भी होते है
जिन्हें बताते नहीं है

चाहे दुःख से छलनी हो सीना
फिर भी हम अपने जख्म दिखाते नहीं है ,

दर्द कितना भी दे कोई
अपनों को बुरा बताते नहीं है

 

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