गुरुवार, 13 अगस्त 2009

नहीं मिलता।

ढँढो तो मिलता है खुदा भी,पर सचा इन्सान नहीं मिलता।
बहुत तलाशा इन नज़रों ने, पर तेरे जैसा नहीं मिलता,
जो भी मुझसे रु- बरु हुआ,
उसे इस जहाँ में कोई नाम नहीं मिलता।
न जाने क्यूँ खो जाते, मेरी आँखों की लकीरों में ,
मेरे आन्सोन को कोई रास्ता नहीं मिलता।
हर किसी को मुकमल जहाँ नहीं मिलता।
किसी को ज़मीन ,किसी को आसमान नहीं मिलता।

2 टिप्पणियाँ:

उम्मीद ने कहा…

aap ki ye rachna ek mashoor gazal se milti julti lagti hai
par aap ne likha bhut achchha hai
apne lekhan ko jari rakhiye
aap sach main bhut achchha likhte hai
kal aap ke saath koi ho na ho par aap ka lekhan aap ka saath nahi chhodega
or is baat ka main aap se bada karti hu
plz likhna mat chhodna

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

agar dindege to mil hi jayega.....bahut achha likha aapne...

 

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